आईने में कौन है वो

दूसरों को समझाने की
जरुरत नहीं है मुझे
तुम समझ लेते हो ये काफ़ी है।
सब को सुनाने की
जरुरत नहीं है मुझे
तुम सुन लेते हो ये काफ़ी है।
चलो घूम के आते है
नदियाँ किनारे
बीते पलों को याद करेंगे
दबा है बहुत कुछ
तुम्हारे भी भीतर
सारे वो किस्से याद करेंगे ।
ऐ आईने! इतने चुप क्यूँ हो
मुझसे भी तुम
कभी बात करो ना
सुनते हो सारी सादगी से मेरी
अपनी भी परेशानी
मुझसे कहो ना।
मेरे ही तरह दिखते हो तुम
जैसे मैं हूँ खोयी
वैसे ही हो तुम भी कहीं गुम ।
पर मानने को राज़ी नही है
ये दिल
कैसे समझायें हम इस को
खुद सामने खड़ा है पर मुझसे है पुछता
आईने में कौन है वो।

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